Kal

कल कल करते बैठेथे हम
कल की कोई सुबह नहीं

कल तो आके निकल गया, पर
कल की कोई कबर नहीं

कल कल करते बैठे तो हम
आज का कोई अर्थ नहीं

कल को आज से हरा दिया तो
आज का कोई अंत नहीं

कल की शुरुवात करे हम आज से तो
कल की कोई सीमा नहीं

आज से हम ने ठान लिया है
कल की कोई राह नहीं

Leave a comment

Create a website or blog at WordPress.com

Up ↑